जीवन में परम लक्ष्य पाने के लिए तीन मार्ग बताए गए हैं इन मार्ग पर चलने से जीवन को सच्चे आनंद और असली खुशी मिलती है
साथ ही आत्म बोध का भी एहसास होता है.
यह तीन उपाय शुरुआत में भले ही कठिन लगे लेकिन जब इन उपाय के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे तभी जीवन आपको परमात्मा से मिलवा जाएगा ज्ञान ही संतोष का मार्ग है यह व्यक्ति को सही गलत न्याय अन्याय अपने पराए सत्य झूठ सत्कर्म दुष्कर्म आदि का एहसास कराता है
यह व्यक्ति की ऐसी अमूल्य संपत्ति है जिसे ना कोई छीन सकता है ना बांट सकता है ना लूट सकता है ऐसा इंसान समाज की अमूल्य
धरोहर होता है
और समाज को सही मार्ग पर ले जा सकता है जो कार्य बड़े-बड़े राजा महाराजा बाहुबली नहीं कर सकते वह कार्य एक बुद्धिमान व्यक्ति कर सकता है
ऐसा व्यक्ति धन संपत्ति वैभव पद शक्ति से ऊपर उठ चुका
होता है स्नेह प्रेम सद्भाव आत्मीयता के रास्ते पर चल निकलता है ऐसे व्यक्ति के लिए समस्त जगत अपना होता है पराया तो कोई होता ही नहीं है.
राजकुमार सिद्धार्थ अपना घर परिवार राजपाट छोड़कर वर्षों बाद महात्मा बुद्ध के रूप में अपने राज्य पहुंचे उनके पहुंचते ही पूरे राज्य में यह सूचना फैल गई कि जो राजकुमार कभी सुसज्जित रों पर सवार होकर निकला करता था
आज भिक्षा मांगता हुआ घूम रहा है बुद्ध के दर्शन के लिए राज्य के लोग आने लगे भगवान बुद्ध के पिता स्वयं महल से बाहर निकले और
पुत्र को गले लगा लिया वह उन्हें आदर सहित महल के अंदर ले गए और उन्हें बड़े आसन पर बैठने को कहा बुद्ध ने कहा मैं आपका पुत्र हूं उन्होंने कहा महाराज प्राचीन प्रथा के हूं
आपके सामने उच्च आसन पर कैसे बैठ सकता अनुसार पुत्र जब बाहर जाता है
और कुछ प्राप्त कर लौटता है तो उसमें सबसे बहुमूल्य वस्तु अपने पिता को सौंप है
दे तो अपना अर्जित कोष आपके चरणों में उपस्थित कर दूं बुद्ध आगे बोले जो कोष में यहां उपस्थित कर रहा हूं वह संसार क्षणिक
वस्तुओं का नहीं है यह शाश्वत ज्ञान का कोष है
यह कहकर उन्होंने वहां सत्य अहिंसा सदाचार का उपदेश सुनाया तो सभी उस अलौकिक धर्म ज्ञान संपदा को पाकर कृत कृत्य हो
उठे उस अनूठी ज्ञान संपदा से राजा के मन को पहली बार संतुष्टि और शांति प्राप्त हुई इसके बाद पूरा परिवार ही संसार सुख संपत्ति का परित्याग कर धर्म प्रचार में संलग्न हो गया ज्ञान का उद्देश्य जीवन लक्ष्य की खोज है इसको धारण कर जीवन धन्य हो उठता है
मानव जीवन सफल हो जाता है अज्ञानता जीवन लक्ष्य से भटकाव है इसका साथ जीते जी कितनी ही बार मार देता है यह अस्तित्व को शून्य में मिलाकर अपमान के गर्त में धकेल देता है और व्यक्ति को
आत्मग्लानि से भर देता है
ज्ञान की पहली धारा बोध की है जो ऊर्जावान वाणी बनकर शब्द की उपासना से प्राण प्रतिष्ठित होती है इसके सुनने मात्र से मन कर्म वचन धन्य हो उठते हैं व्यक्ति वंदनीय हो जाता है
आध्यात्मिक जीवन के परम लक्ष्य को पाने के तीन मार्ग बताए गए हैं बुद्धि मार्ग कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग बुद्धि का अर्थ किताबी नहीं है यह वस्तु का बोध नहीं बल्कि आत्म बोथ है इस तक सत्य की सहायता से ही पहुंचा जा सकता है
आध्यात्मिक प्रगति के शीर्ष पर जो मनुष्य प्रतिष्ठित होना चाहते हैं उनके सामने तीन मार्ग खुले हुए हैं